Monday 17 February 2014

संतुष्टि

असंयमित मन
उठा देता सुनामी 
जीवन में,
उत्तंग लहरें 
असीमित इच्छाओं की 
बहा ले जातीं साथ
सुख और शांति,
छोड़ जातीं महाविनाश 
असंतुष्टि का.

कितना कठिन 
सामना सुनामी का,
केवल दीवार 
संतुष्टि और विवेक की 
रोक पाती लहरें
मन के सुनामी की.

....कैलाश शर्मा 

15 comments:

  1. निश्‍चय ही संतुष्टि और विवेक ही बचे हैं अस्‍त्र के रूप में जीवन की सुनामी से लड़ने को।

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  2. बहुत सुंदर और सटीक भी ।

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  3. असीमित इच्छाएं के अंत में निराशा ही हाथ लगती है..
    विवेक और संतुष्टि ही बचने के उपाय है ....

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  4. मगर आज की तारिक में क्या यह अस्त्र सभी के पास हैं जीवन की इस सुनामी से लड़ने के लिए ? शायद नहीं।

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  5. वाकई विवेक और संतुष्टि की इन दीवारों को ही और मजबूत करना होगा यदि मन की सुनामी पर विजय पानी है तो ! बहुत सुंदर रचना !

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  6. " मन के हारे हार है मन के जीते जीत ।
    पार ब्रह्म को पाइये मन के ही परतीत ॥"
    कबीर

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  7. मनुष्य अपनी समस्याओं से बहुत बडा है ।

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  8. bdi vichitra sunami mnn ki hoti hai..koi vaigyanik bhi rahsy smjh pata nhi ...sundar....

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  9. SANTUSHTI HI SUNDAR OR SVASTH JIVAN KA AADHAR HAI.

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  10. bilkul sahi kaha...sarthak rachna

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  11. सहमत हूँ आपकी बात से ... कठिन निश्चय और आत्मबल से थामा जा सकता है भावनाओं के प्रबल वेग को ...

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  12. बहुत सुन्दर बिम्ब प्रयोग किये हैं .... गहन रचना

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  13. विचारणीय और महत्वपूर्ण... संयम और विवेक मनुष्य जीवन की श्रेष्ठतम पूंजी है...

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  14. बहुत सुंदर और सटीक.....

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