Thursday 24 April 2014

आत्म-विश्वास

पाने को अपनी मंज़िल
चलना होता है स्वयं 
अपने ही पैरों पर,
दे सकते हैं साथ 
केवल कुछ दूरी तक 
क़दम दूसरों के.

जुटानी होती है सामर्थ 
करना होता है विश्वास 
अपने पैरों पर,
नहीं रुकता कारवां 
देने को साथ 
थके क़दमों का,
ढूँढनी होती है स्वयं 
अपनी राह और मंज़िल
और बढाने होते हैं क़दम 
स्वयं मंज़िल की ओर.

....कैलाश शर्मा 

Thursday 10 April 2014

तलाश खुशियों की

लिये आकांक्षा अंतस में चढ़ने की 
खुशियों और शांति की चोटी पर 
करने लगते संग्रह रात्रि दिवस
साधनों, संबंधों, अनपेक्षित कर्मों का
और बढ़ा लेते बोझ गठरी का।
उठाये भारी गठरी कंधे पर 
पहुंचते जब चोटी पर
नहीं बचती क्षमता और रूचि 
करने को अनुभव सुख और ख़ुशी
गँवा दिया जीवन जिसकी तलाश में।

उठाते कितने कष्ट करने में संग्रह 
सुख सुविधा के भौतिक साधन  
लेकिन नहीं मिलती संतुष्टि,
जुट जाते हैं पुनः करने को पूरी 
नयी इच्छा नहीं है जिनका अंत,
नहीं निकल पाते जीवन भर 
इच्छाओं के मकड़जाल से 
और कर देते हैं विस्मृत 
ख़ुशी नहीं केवल उपलब्धि 
भौतिक सुविधाओं की,
यह है केवल एक मानसिक स्तिथि
जिसे पाते हैं समझ 
जब देर बहुत हो चुकी होती।

नहीं हैं अनपेक्षित कर्म
और न ही संभव छुटकारा उनसे
पर जब बन जाते हैं कर्म
केवल एक साधन पाने का
एक चोटी उपलब्धि की,
विस्मृत हो जाता आनंद कर्म का
और उपलब्धियां खो देती हैं अर्थ
पहुँचने पर चोटी पर.

रिश्तों और संबंधों को 
बनाते बैसाखी चढ़ने को 
चोटी पर सफलता की
और कर देते तिरस्कृत उनको 
सफलता के घमंड में,
पाते हैं खुशियाँ कुछ पल की 
और पाते स्वयं को अंत में 
सुनसान चोटी पर 
खुशियों से दूर और एकाकी।

साधन और सम्बन्ध 
दे सकते खुशियाँ 
केवल कुछ पल की,
खुशियों के लिये जीवन में 
ज़रुरत है समझने की अंतर 
क्या है आवश्यक और अनावश्यक 
साधन और संबंधों में।

जितना कम होगा बोझ कंधों पर 
होगी उतनी ही सुगम और सुखद 
यात्रा इस जीवन की।

कैलाश शर्मा 

Thursday 3 April 2014

वर्तमान

हर आती सांस 
देती एक ऊर्जा व शांति 
तन और मन को, 
जब निकलती है सांस 
दे जाती मुस्कान अधरों को.

हर श्वास का आना जाना ही 
है एक सम्पूर्ण शाश्वत पल,
जियो इस पल को 
विस्मृत कर भूत व भविष्य.

....कैलाश शर्मा