Tuesday 26 August 2014

आधा अधूरा सत्य

ढो रहे हैं
अपने अपने कंधों पर
अपना अपना सत्य
अनज़ान सम्पूर्ण सत्य से।

प्रत्येक का अपना सत्य 
समय, परिस्थिति, सोच अनुसार 
जो बन जाता उसका सम्पूर्ण सत्य
और बाँध देता उसकी सोच
अपने चारों ओर जीवन भर।

प्रतिज्ञाबद्ध भीष्म का 
अपनी प्रतिज्ञा का सच
जो कर देता आँखें बंद 
अन्य सभी सच से,
दुर्योधन को अपना अपमान
बन जाता अपना सच
करने को अपमान द्रोपदी का,
अपने अपमान का प्रतिशोध
द्रोपदी का अपना सच,
अहसानों की जंजीरों में आबद्ध 
द्रोणाचार्य, कर्ण का अपना सच,
सम्पूर्ण सच से बाँध पट्टी आँखों पर
उतरे सभी महाभारत युद्ध में
अपने अपने सच को साथ लेकर।

कितना सापेक्ष हो गया है सच 
क्यों बंधे रहते केवल अपने सच से,
क्यों बाँध लेते पट्टी आँखों पर
जब खड़ा होता सम्पूर्ण सत्य सामने।

सत्य केवल सत्य होता है
कोई आधा अधूरा नहीं
सापेक्षता से कोसों दूर,
काश स्वीकार कर पाते  
अस्तित्व सम्पूर्ण सत्य का
टल जाते कितने महाभारत जीवन में।

....© कैलाश शर्मा 

Tuesday 12 August 2014

तलाश सम्पूर्ण की

टुकड़े टुकड़े संचित करते जीवन में
भूल जाते अस्तित्व सम्पूर्ण का,
देखते केवल एक अंश जीवन का
मान लेते उसको ही सम्पूर्ण सत्य
वही बन जाता हमारा
स्वभाव, प्रकृति, अहम् और ‘मैं’.

नहीं होता परिचय सम्पूर्ण से
केवल बचपने प्रयासों द्वारा,
जगानी होती बाल सुलभ उत्सुकता,
बचपना है एक अज्ञानता
एक भय नवीनता से,
बचपन है उत्सुकता और मासूमियत
जिज्ञासा जानने की प्रति पल
जो कुछ आता नवीन राह में,
नहीं ग्रसित पूर्वाग्रहों 
पसंद नापसंद, भय व विचारों से,
देखता हर पल व वस्तु में
आनंद का असीम स्रोत.

जैसे जैसे बढ़ते आगे जीवन में
अहंकार जनित ‘मैं’,
घटनाएँ, विचार और अर्जित ज्ञान
आवृत कर देता मासूमियत बचपन की,
देखने लगते वर्तमान को
भूतकाल के दर्पण में,
भूल जाते अनुभव करना 
प्रत्यक्ष को बचपन की दृष्टि से.

जीवन एक गहन रहस्य
अपरिचित दुरूह राहें
अनिश्चित व अज्ञात गंतव्य,  
बचपन की दृष्टि 
है केवल संवेदनशीलता
अनभिज्ञ भावनाओं
व ‘मैं’ के मायाजाल से
जो करा सकती परिचय
हमारे अस्तित्व के
सम्पूर्ण सत्य से.


....कैलाश शर्मा