Saturday 22 November 2014

'मैं'

'मैं' हूँ नहीं यह शरीर
'मैं' हूँ जीवन सीमाओं से परे,
मुक्त बंधनों से शरीर के।
'मैं' हूँ अजन्मा
न ही कभी हुई मृत्यु,
'मैं' हूँ सदैव मुक्त समय से
न मेरा आदि है न अंत।

'मैं' हूँ सच्चा मार्गदर्शक
जो भी थामता मेरा हाथ
नहीं होता कभी पथ भ्रष्ट,
लेकिन देता अधिकार चुनने का
मार्ग अपने विवेकानुसार,
टोकता हूँ अवश्य
पर नहीं रोकता निर्णय लेने से,
'मैं' हूँ सर्व-नियंता, सर्व-ज्ञाता
लेकिन बहुत दूर अहम् से।

...कैलाश शर्मा