Wednesday 4 November 2015

अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद (सोलहवीं कड़ी)

                                       सप्तम अध्याय (७.१-७.५)
                                            (with English connotation)
राजा जनक कहते हैं :
King Janak says :

मेरे अनंत आत्म सागर में, समस्त विश्व एक नौका सम होता|
स्व-मन वायु से भ्रमित है नौका, पर मेरा मन क्षुब्ध न होता||(७.१)

In the infinite ocean of my Self, the entire world is
like a boat, which wanders here and there driven
by its own wind. But this does not disturb me.(7.1)

मेरी आत्मा के अनंत सागर में, उदित विश्व रूप लहरें हैं होती|
लेकिन लहरों के उठने गिरने से, मुझमें वृद्धि न क्षति है होती||(७.२)

Though the world rises like waves in the infinite
ocean of my Self, yet due to this rise and fall of
waves, my Self does not lose or gain anything.(7.2)

मेरे अनंत आत्म सागर में, जगत समस्त कल्पना भर है|
निराकार अति शांत रूप मैं, केवल आत्मा पर निर्भर है||(७.३)

In the infinite ocean of my Self, the world is like
imagination or dream. I am supremely peaceful
and formless and I am nothing but Self.(7.3)

उस अनंत निर्द्वंद्व के मन में, ‘मैं’ या अन्य भाव न होता| 
निस्पृह, शांत, असंग भाव से, आत्मा में स्थिति है होता||(७.४)

In that infinite and spotless state, there is no
feeling of I or of any other object. In that
un-attached, desireless and peaceful state
he exists in Self.(7.4)

आश्चर्य मैं चैतन्य मात्र हूँ, और जगत इंद्रजाल के जैसा|
अच्छे और बुरे का चिंतन, मुझमें कहाँ और हो कैसा||(७.५)

It is surprising that I am pure consciousness
and this world is like a magic. How and where
the thought of good or bad may exist in me.(7.5)

                     सप्तम अध्याय समाप्त 

                                                   ....क्रमशः

....©कैलाश शर्मा

8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (05-11-2015) को "मोर्निग सोशल नेटवर्क" (चर्चा अंक 2151) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. खूबसूरत अनुवाद।बहुत खूब सर।

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  3. खूबसूरत अनुवाद।बहुत खूब सर।

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  4. प्रणम्य प्रस्तुति ।

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  5. On Diwali and in the coming year... May you & your family be blessed with success, prosperity & happiness!

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  6. उस अनंत निर्द्वंद्व के मन में, ‘मैं’ या अन्य भाव न होता|
    निस्पृह, शांत, असंग भाव से, आत्मा में स्थिति है होता
    महापुराणों और अन्य ज्ञानवर्धक पुस्तकों ने हमें हमेशा जीवन का एक उद्देश्य बताया है , जीवन को जीने की कला बताई है लेकिन इस युग में हम कहाँ इन सब का अनुसरण कर पाते हैं ? और जो कर पाते हैं वो निश्चित ही धन्य और विशिष्ट हैं !!

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